ग्लोबल वार्मिंग में आधे डिग्री की वृद्धि से धरती पर मनुष्यों का जीना मुहाल हो जाएगा।
यह चेतावनी दी है यूके और यूएसए के वैज्ञानिकों की एक साझा स्टडी के नतीजों ने।
पता चला है कि बढ़ती ग्लोबल वार्मिंग से आने वाले दशकों में धरती मानव शरीर के लिए असहनीय रूप से गर्म हो जाएगी।
असहनीय गर्मी से बुजुर्गों के बाद अब स्वस्थ युवाओं की जान को भी खतरा हो जाएगा।
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जांच में पाया गया कि ग्लोबल वार्मिंग 2°C (डिग्री सेल्सियस) से ऊपर होने पर धरती के गर्म इलाके 6% अधिक गर्म हो जाएंगे।
यानी तापमान पूर्व-औद्योगिक स्तर से 2°C ऊपर होने पर गर्मी में अमेरिका जितने देश इतने गर्म हो जाएंगे कि 18 साल वालों के लिए भी सुरक्षित शारीरिक तापमान बनाए रखना कठिन होगा।
उन परिस्थितियों में, गर्म देशों के 60 साल से अधिक के बुजुर्गों की जान को खतरा लगभग 35% तक बढ़ जाएगा।
वैज्ञानिकों ने बताया कि पिछले वर्ष वैश्विक औसत तापमान पूर्व-औद्योगिक औसत से 1.5°C अधिक था।
वार्मिंग की वर्तमान दरों के आधार पर, सदी के मध्य से अंत तक तापमान 2°C जा सकता है।
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निष्कर्ष बताते है कि ग्लोबल वार्मिंग 2°C तक पहुंचने से मानव स्वास्थ्य पर घातक परिणाम पड़ेंगे।
गर्म क्षेत्रों में रहने वाले बुजुर्ग जिस असहनीय गर्मी से परेशान थे, उससे अब युवाओं के भी प्रभावित होने की संभावना है।
इससे छाया, तेज हवा और अच्छी तरह से हाइड्रेटेड रहने के बावजूद जानलेवा हीटस्ट्रोक की संभावना बढ़ेगी।
वातावरण की ऐसी घातक परिस्थितियों में कई कारणों से इंसानों की मृत्यु दर बढ़ने का पुरजोर अनुमान है।
उपरोक्त नतीजों के लिए वैज्ञानिकों ने भौतिक जलवायु विज्ञान और गर्मी से होने वाली मौतों के जोखिम का आकलन किया था।
इस दौरान, मानव शरीर का तापमान तेजी से 42°C तक बढ़ने और इस बढ़े हुए तापमान को बर्दाश्त करने की सीमा जानी गई।
1994-2023 के बीच, 60 वर्ष से कम वालों के लिए मानव शरीर तापमान सहनशीलता लगभग 2% से ज्यादा थी।
लेकिन अब धरती का 20% से अधिक हिस्सा गर्मी के प्रति अधिक संवेदनशील लोगों के लिए खतरनाक होगा।
बढ़ते तापमान के कारण खासकर अफ्रीका और दक्षिण एशिया के लोगों को सबसे अधिक नुकसान होगा।
विशेष रूप से 4°C से ऊपर तापमान जाने पर अत्यधिक गर्मी से उत्पन्न स्वास्थ्य प्रभाव बेहद घातक हो सकते हैं।
21वीं सदी की अत्यधिक गर्मी से संबंधित तीन घटनाओं ने सामूहिक रूप से लगभग 200,000 लोगों की जान ली थी।
इनमें वर्ष 2003 और 2022 के दौरान पूरे यूरोप में क्रमश: लगभग 72,000 व 62,000 मौतें हुई।
इसके अलावा, वर्ष 2010 की रूसी हीटवेव में लगभग 56,000 लोगों के मारे जाने का अनुमान था।
इस बारे में और जानकारी नेचर रिव्यूज़ अर्थ एंड एनवायरनमेंट में प्रकाशित स्टडी से मिल सकती है।
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